नयनों की आभा पलकों से छलक,
दूजे नयनों में प्रशस्त हुई।
प्रश्न, उत्तर, प्रतिप्रश्न, प्रत्युत्तर,
प्रति-स्मिता में परिणत हुई।।

ना, हाँ, शायद, अवश्य,
संशय के बीते क्षण विशेष।
तितलियों की परस्पर भाषा में
प्रेमासिक्त हुए दृग अनिमेष।।

दो युग्म कदमों की उल्टी दिशा
दो प्राण परस्पर निकटस्थ हुए।
फिर हाँ, फिर ना, फिर संशय,
दो अधर पुनः आश्वस्त हुए।।

उन्नत मुख, झुकी पलकों की 
भाषा पढ़ी, उत्सुक उर ने।
तीव्र सांसों का संग दिया
ह्रृदय के तीव्रतर स्वर ने।।

काँपते, अधखुले होठों से,
प्रेयसी ने कुछ कहा ना पर
प्रियतम के आकुल आँखों ने
पढ़ लिए प्रिया-समर्पण के स्वर।।

वक्षों पे प्रथम स्पर्श, निकले
प्रिया-मुख से सिसकी बनकर
मधुर आह को गिरने से प्रिय ने
रोका अधर पे अधर धरकर।।

सतः-कौमार्य-सिक्त होठों पर
प्रियतम के होठों का प्रथम स्पर्श।
व्यग्र तन त्यों संतृप्त हो,
हो गया स्वतः प्रशांत सहर्ष।। 

Back