सीख



गाड़ी सुरंग से गुजरी,
ना रौशनी की लीक
ना अंत का आसार

था तो बस -
संन्नाटा
और
अंधकार का साम्राज्य।

हाथों को ना सूझते हाथ
संपूर्ण शरीर समझो निराकार ।

थी तो बस -
एक अनुभूति,
एक आभास,
और 
एक उर का विश्वास।
 
तब तम ने सिखाया मन को  
देख क्या है तू -
एक अनुभूति, एक आभास,
और एक विश्वास
कि तू, तू है।।

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