उठो सिंह तुम करो नाद
करो ना कुछ और विचार।।
समय चिंतन का तुम खो चुके
जागो कि बहुत तुम सो चुके ।।

वरद रहा तुमपे सदा अखिलेश का
भय भला है तुम्हें किस क्लेश का ?
सेज अंगारों की सजें, तुम्हें क्या ?
दुनिया रहे गरजती, इससे  तुम्हें क्या ?

तुम्हें तो बस शक्ति का करना है संधान
और पूज शारदे को समृद्ध करना ज्ञान
ना देेख चहुँ ओर अपनी आँखें मलो
साध अग्नि, कर कर्मपथ पर आगे चलो।।

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