मेरी नानी

मेरी नानी दंतहीन मुख, ज्योतिहीन हैं नयन तो क्या ? शरीर हो गया हो जर्जर केशादि भी गये हों झड़ तो क्या ? एक दिल तो है जो धड़कता है, उस धड़कन में एक ध्वनि है ध्वनि – जो है ममत्व का विस्तार गागर में सागर को चरितार्थ करता वह, एक दिल तो है! ना…


दंतहीन मुख, 
ज्योतिहीन हैं नयन 
तो क्या ?
शरीर हो गया हो जर्जर
केशादि भी गये हों झड़ 
 तो क्या ?

एक दिल तो है जो धड़कता है,
उस धड़कन में एक ध्वनि है
ध्वनि - जो है ममत्व का विस्तार
गागर में सागर को चरितार्थ करता
वह, एक दिल तो है!

ना हो नयनों में रौशनी, ना सही
एक दृष्टि तो है - प्यार की, त्याग की
जिससे सींचा हो आँगन को,
सुधवर्षा की हो जीवन भर
अपनों पर  और औरों पर ।।

मुख में ना हो दंतमाल ना सही
एक जिव्हा , एक वाणी तो है
वाणी, कि जिसने गाई लोरियाँ
रोते बच्चों को सुलाया
नए पुष्पों को खिलाया।।

तृण-भार सी हो भले ही काया
परंतु गुरुत्व माता का समेटे
वह शरीर दुबला, पतला नाटा है पर
पूज्य क्यों ना माने उसे यह बेटा ।।

अंतिम पड़ाव की आस में 
पथराई आँखें देख रही हैं
शायद .म से पहले आए वो,
वो घड़ी, कि जिसमें वो
 की नानी कहलाए।।

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